लेखनी प्रतियोगिता -17-Nov-2021मैं राही बन।
चलते चलते बहुत ।
थक गई हूँ।
ये समय रूके तो ।
मैं भी रूक जाऊँ।
घड़ी की सुईयो जैसी ।
निरन्तर चल रहीं हूँ।
चलते-चलते बहुत ।
थक गई हूँ।
अभी तो शादी हुई है ।
जिंदगी की न्ई ।
शुरूआत हुई है।
अभी से थक गई तो ।
कैसे चलेगा।
परिवार पूरा सम्भाल लूँ।
फिर मै रूकूगी।
चलते-चलते बहुत ।
थक गई हूँ ।
बच्चों और पति के साथ ।
कुछ समय में अच्छे से बिता लूँ
थोड़ा आहिस्ता आहिस्ता ।
सांस मैं भरूगी।
बच्चों के पीछे-पीछे ।
निरन्तर चल रहीं हूँ
चलते चलते बहुत ।
थक गई हूँ।
सोचा इन सबकी ।
जिम्मेदारी हो जाए पूरी।
थोड़ा साँस ले लूँ बस ।
जितना हो जरूरी।
जिदंगी के पड़ाव ।
निरन्तर पार कर रही हूँ।
चलते-चलते बहुत ।
थक गई हूँ।
अब जिंदगी की।
शाम भी आ ग्ई।
सुबह के इन्जार में।
रात गुजरने का ।
इन्तजार कर रही हूँ।
मै पृथ्वी की जैसी ।
लगातार घूम रही हूँ।
चलते चलते बहुत ।
थक गई हूँ।
मैं राही इन जीवन
रूपी राहों मे ।
सब कुछ छोड़ चली हूँ।
इस शरीर को छोड़ ,
अब उस प्रभु के पास जा रही हूं ।
अब आराम करूंगी ।
चलते-चलते बहुत
थक गई हूँ।
Chirag chirag
09-Dec-2021 05:02 PM
Nice written
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Seema Priyadarshini sahay
09-Dec-2021 04:37 PM
बहुत खूबसूरत रचना
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Niraj Pandey
18-Nov-2021 09:52 AM
बहुत ही बेहतरीन
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